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संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ: पंडित प्रभाकर पांडेय

जौनपुर: (बरसठी) मनुष्य स्वयं को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करे, प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड़कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते हैं। उक्त बातें बुधवार को खुआवा गाँव में चल रही आठ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के समापन पर काशी क्षेत्र से पधारे कथा व्यास पंडित प्रभाकर पांडेय ने कही।

कथा के अंतिम दिन श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन, श्रीमद्भागवत तथा श्रीव्यास पूजन किया गया। कथावाचक पंडित प्रभाकर पांडेय जी महाराज ने श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे। “पानी परात को हाथ छुवो नाहीं, नैनन के जल से पग धोये।” कृष्ण अपने बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए कि द्वारका के नाथ हाथ जोड़कर और अंग लिपटाकर जल भरे नेत्रों से सुदामा का हालचाल पूछने लगे। उन्होंने बताया कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में कभी धन दौलत आड़े नहीं आती। कथा के दौरान सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अगले प्रसंग में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई, जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। कथा की मुख्य यजमान सरोजा देवी पत्नी चंद्रकेश शुक्ला रहीं। इस मौके पर राजेन्द्र शुक्ल, परीक्षित शुक्ला, वंशनरायन शुक्ला, पंडित सुरेंद्र शुक्ला, श्रवण शुक्ला, रामउजागीर शुक्ला, प्रधान संघ अध्यक्ष गजेंद्र दुबे, सुधांशु विश्वकर्मा, सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।

 

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Author: fastblitz24

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