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राजनीति की परिक्रमा: बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट पर अखिलेश का ‘विरोध’, क्या है हिंदुत्व का नया दांव?

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की राजनीति में धर्म और सियासत का गठजोड़ कोई नई बात नहीं है, लेकिन अब बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर शुरू हुआ विवाद एक नया मोड़ ले रहा है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मथुरा के प्रतिष्ठित बांके बिहारी मंदिर के लिए गठित नए ट्रस्ट और मंदिरों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप को लेकर बीजेपी सरकार पर तीखा हमला बोला है। हालांकि, उनकी इस ‘मंदिर चिंता’ पर कई लोग सवाल उठा रहे हैं, खासकर वे जो जानते हैं कि वृंदावन में बांके बिहारी के दर्शन करना कितनी बड़ी चुनौती है। क्या यह विरोध केवल धार्मिक भावनाओं का सम्मान है, या फिर बीजेपी के हिंदुत्व नैरेटिव को चुनौती देने का एक राजनीतिक दांव?

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मथुरा और वृंदावन की यात्रा करने वाले श्रद्धालु अक्सर बांके बिहारी मंदिर में दर्शन की अव्यवस्था और भारी भीड़ से परेशान होते हैं। ऐसे में मंदिर के लिए सुधार की मांग लंबे समय से हो रही थी। जब योगी सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए एक नए ट्रस्ट का गठन किया, तो अखिलेश यादव ने तुरंत इसका विरोध शुरू कर दिया। उनके विरोध का एक मुख्य तर्क यह है कि बीजेपी सरकार पारंपरिक प्रबंधकों से अधिकार छीनकर प्रशासनिक अधिकारियों को नियुक्त कर रही है, जिससे मंदिरों की स्वायत्तता और धार्मिक परंपराएं खतरे में पड़ रही हैं। उन्होंने मंदिरों में भ्रष्टाचार और श्रद्धालुओं के दान के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया, यह कहते हुए कि ‘धर्म भलाई के लिए होता है, कमाई के लिए नहीं।’

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव की यह ‘मंदिर चिंता’ सिर्फ धार्मिक हित से नहीं जुड़ी है, बल्कि इसका सीधा संबंध 2027 के विधानसभा चुनावों से है। उन्हें हिंदू मतदाताओं के छिटकने का डर सता रहा है, और वे बांके बिहारी ट्रस्ट विवाद, सरकारी हस्तक्षेप और कॉरिडोर योजना जैसे मुद्दों को उठाकर बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे को चुनौती देना चाहते हैं। बीजेपी ने उनके विरोध को ‘पाखंड’ करार दिया है, जबकि सपा इसे ‘हिंदू हित’ से जोड़ने का प्रयास कर रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा आने वाले चुनावों में क्या रंग लाता है।

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Author: fastblitz24

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