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प्रलय की चेतावनी

 हिंदू कुश हिमालय की पिघलती बर्फ, भारत समेत 6 देशों पर आसन्न खतरा!

 नई दिल्ली: हिंदू कुश हिमालय, जिसे ‘तीसरा ध्रुव’ भी कहा जाता है, तेजी से पिघल रहा है, और यह सिर्फ एक पर्यावरणीय चिंता नहीं, बल्कि भारत समेत छह एशियाई देशों के लिए एक गंभीर मानवीय संकट का संकेत है। हाल ही में साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक नई स्टडी ने चेतावनी दी है कि यदि वैश्विक तापमान में वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया गया, तो सदी के अंत तक इस क्षेत्र की 75% बर्फ पिघल सकती है, जिससे 200 करोड़ लोगों को पानी देने वाली नदियों का स्रोत बुरी तरह प्रभावित होगा। यह स्थिति न केवल पानी की कमी, बल्कि भयावह बाढ़ और तटीय क्षेत्रों में बढ़ते समुद्री जलस्तर जैसी आपदाओं को भी न्योता देगी।

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यह भयावह भविष्यवाणी हमें जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी मौजूदा लापरवाही का परिणाम दिखाती है। स्टडी बताती है कि यदि हम वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं, तो भी लगभग 40-45% बर्फ ही बच पाएगी। लेकिन, अगर मौजूदा जलवायु नीतियां जारी रहती हैं, और दुनिया का औसत तापमान 2100 तक 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो वैश्विक स्तर पर केवल 25% ग्लेशियर बर्फ ही बचेगी। हिंदू कुश हिमालय की स्थिति और भी गंभीर हो सकती है, जहां 75% बर्फ पिघलने का अनुमान है।

यह क्षेत्र, जो गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र जैसी 10 प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और चीन जैसे देशों के लिए जीवनरेखा है। बर्फ पिघलने से पहले इन नदियों में अप्रत्याशित बाढ़ आएगी, जिसके बाद गंभीर जल संकट उत्पन्न होगा, जो कृषि, ऊर्जा उत्पादन और जैव-विविधता पर विनाशकारी प्रभाव डालेगा। अन्य क्षेत्रों जैसे यूरोपियन आल्प्स, रॉकीज़ (अमेरिका और कनाडा), आइसलैंड और स्कैंडिनेविया में भी 85-90% या उससे भी अधिक बर्फ खत्म होने का अनुमान है।

 चेतावनी:

 * संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन: ताजिकिस्तान की राजधानी दुशानबे में 29 मई 2025 से शुरू हुए ग्लेशियरों पर पहले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में 50 से अधिक देशों ने भाग लिया, जिसमें पिघलते ग्लेशियरों से 200 करोड़ लोगों की आजीविका को खतरे में बताया गया।

तापमान का महत्व: स्टडी के सह-लेखक डॉ. हैरी ज़ेकोलारी के अनुसार, तापमान में प्रत्येक 0.1 डिग्री का अंतर भी मायने रखता है, और हमारे आज के निर्णय ही तय करेंगे कि कितने ग्लेशियर बचेंगे।

समाधान: वैज्ञानिकों ने कोयला और तेल के बजाय सौर और पवन ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने और बाढ़ व सूखे से प्रभावित क्षेत्रों को आर्थिक सहायता देने का सुझाव दिया है।

हालिया घटनाएं: मई 2025 में स्विट्जरलैंड के ब्लैटेन गांव में बिर्च ग्लेशियर के पिघलने से हिमस्खलन और हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में बढ़ता बाढ़ का खतरा इस चेतावनी की गंभीरता को दर्शाता है। 2023 में सिक्किम के साउथ ल्होनक ग्लेशियर का टूटना और 2024 का रिकॉर्ड सबसे गर्म साल होना, ग्लेशियरों के पिघलने की गति को और तेज कर रहा है।

भविष्य का संकट: यदि हम तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित नहीं कर पाते हैं, तो आने वाली पीढ़ियों को भारी संकट झेलना पड़ेगा, जिसमें पानी की कमी, खाद्य असुरक्षा और बढ़ती प्राकृतिक आपदाएं शामिल हैं। स्वच्छ ऊर्जा अपनाना और जलवायु परिवर्तन से लड़ना अब हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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Author: fastblitz24

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