30 अप्रैल 2025 को मोदी सरकार ने राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना कराने का ऐलान किया। यह निर्णय उस सरकार के लिए आश्चर्यजनक है, जिसने पहले जाति जनगणना का अपरोक्ष रूप से विरोध किया था। 2021 में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने कहा था कि जाति जनगणना प्रशासनिक रूप से कठिन और अव्यवहारिक है
भारत में जाति एक सच्चाई है। कहा जाता है कि जाति कभी नहीं जाती। बीजेपी जानती है कि हिंदू पहले अपनी जाति का है, उसके बाद ही वह हिंदू धर्म का है। अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी कुल आबादी का 40-50% हिस्सा है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में एक शक्तिशाली वोट बैंक है।

बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां जाति जनगणना एक प्रमुख मुद्दा है1। 2023 के जाति सर्वेक्षण में बिहार में 36% OBC और 27% अति पिछड़ा वर्ग (EBC) की पहचान हुई थी, यानी 63% आबादी पिछड़ों की है1। बीजेपी इस राज्य में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती।
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जाति जनगणना कराने और 50% आरक्षण सीमा हटाने का वादा किया था1। समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति करके 43 सीटें जीतकर BJP को पीछे कर दिया1।
29 अप्रैल 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात के बाद जाति जनगणना कराने की घोषणा हुई। RSS ने पिछले दिनों इशारा कर दिया था कि उसे जाति जनगणना से कोई विरोध नहीं है, बशर्ते इस आधार पर राजनीति न हो
बीजेपी इस फैसले को एक “मास्टरस्ट्रोक” के रूप में पेश कर रही है। पार्टी की कोशिश है कि वह खुद को सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व की पार्टी के रूप में स्थापित करे
RSS और BJP दोनों को डर है कि अगर विपक्ष को जनगणना का श्रेय मिला, तो यह OBC और दलित वोटरों को उनकी ओर खींच सकता है। RSS इस मुद्दे को कल्याणकारी और सामाजिक समरसता के ढांचे में पेश करके विपक्ष के सशक्तिकरण नैरेटिव का मुकाबला करना चाहता है
हालांकि, यह फैसला दोधारी तलवार भी साबित हो सकता है – जातिगत आंकड़े सामने आने के बाद “कोटा के भीतर कोटा” जैसी मांगें बढ़ सकती हैं और राजनीतिक दलों को अपने समीकरण फिर से गढ़ने पड़ सकते हैं

Author: fastblitz24



