– धूमधाम से मनाई गई बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा की जयंती
जौनपुर। जिले के मड़ियाहूं स्थित पटेल कॉम्प्लेक्स में सरदार सेना के कार्यालय पर भारत के लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा की जयंती समारोह का आयोजन सरदार सेना संगठन द्वारा किया गया।

इस अवसर पर सरदार सेना के जिलाध्यक्ष अरविंद कुमार पटेल ने अपने उद्बोधन में कहा कि बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने समाज और देश के विकास के लिए तमाम कुरीतियों का सामना किया और देशवासियों के हितों के लिए कई लड़ाइयाँ लड़ीं। वे रूस के महान मजदूर नेता लेनिन से प्रेरित थे और उनके विचारों का आज भी देशभर में लोहा माना जाता है। बिहार में जन्मे बाबू जगदेव प्रसाद को ‘भारत के लेनिन’ के नाम से जाना जाता है।
बोधगया के समीप कुर्था प्रखंड के कुरहारी गाँव में जन्मे बाबू जगदेव प्रसाद का परिवार अत्यंत निर्धन था। उनके पिता प्रयाग नारायण कुशवाहा प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक थे और माता रासकली देवी गृहिणी थीं। बचपन से ही वे ज्योतिबा फुले, पेरियार, डॉ. अंबेडकर और महामानववादी रामस्वरूप वर्मा जैसे समाज सुधारकों के विचारों से प्रभावित थे।
बचपन से ही वे समता और न्याय के प्रबल समर्थक थे। एक घटना का जिक्र करते हुए पटेल ने बताया कि एक बार बिना गलती के शिक्षक ने उन्हें थप्पड़ मारा, तो कुछ दिनों बाद जब वही शिक्षक कक्षा में सो रहा था, तब जगदेव प्रसाद ने भी उन्हें थप्पड़ जड़ दिया। जब शिक्षक ने इसकी शिकायत प्रधानाचार्य से की, तो निडरता से उन्होंने जवाब दिया – “गलती के लिए सजा सबको बराबर मिलनी चाहिए, चाहे वह छात्र हो या शिक्षक।”
जगदेव प्रसाद ने कठिन आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद पटना विश्वविद्यालय से स्नातक और परास्नातक की शिक्षा पूरी की। इसी दौरान उनकी मुलाकात चंद्रदेव प्रसाद वर्मा से हुई, जिन्होंने उन्हें महामानवों के विचारों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी से जुड़कर जमींदारी प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उस समय जमींदारों की ‘पंचकठिया प्रथा’ के तहत किसानों की फसल का पाँच कट्ठा हिस्सा जमींदारों के हाथियों को चारे के रूप में देना पड़ता था। जब महावत हाथी लेकर आया, तो बाबू जगदेव प्रसाद और उनके साथियों ने उसे रोक दिया और भविष्य में दोबारा ऐसा न करने की चेतावनी दी। इस घटना के बाद पंचकठिया प्रथा का अंत हो गया।
1967 में उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में कुर्था विधानसभा सीट से जीत दर्ज की। उनकी सूझबूझ के कारण बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। लेकिन जब उन्होंने देखा कि “कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला” जैसी स्थितियाँ बनी हुई हैं, तो उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी छोड़ दी और 25 अगस्त 1967 को ‘शोषित दल’ नामक नई पार्टी बनाई।
उनके ओजस्वी नारों और जनसंघर्ष के कारण बिहार की जनता उन्हें ‘बिहार के लेनिन’ के नाम से बुलाने लगी। उन्होंने छात्र आंदोलन को जन आंदोलन का रूप दिया और पूरे बिहार में सभाएँ कीं, जिससे जनता में नया जोश उत्पन्न हुआ।
इस अवसर पर आर.सी. पटेल, संकल्प पटेल, बिजेंद्र पटेल, जितेंद्र पटेल, परमेश पटेल, वकील, त्रिभुवन सिंह, रोबिन पटेल, डॉ. साहब लाल पटेल, सभाजीत पटेल सहित तमाम कार्यकर्ता मौजूद रहे।

Author: fastblitz24



