शोपियां में मिली एक ऐसी पहाड़ी, जहां उकेरी गई है देवी-देवताओं की मूर्ति
नई दिल्ली। इस्लामी उन्माद और आतंकवाद के जरिए घाटी के इस्लामीकरण के लिए बेताब कश्मीर में समृद्ध सनातन संस्कृति के पुख़्ता प्रमाण मिले है।
कश्मीर के शोपियां में हीर पोरा के घने जंगलों में प्राचीन नक्काशी और इमारतें मिली हैं, जो इस इलाके के समृद्ध सनातन सांस्कृतिक इतिहास को उजागर करती हैं. ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर उकेरी गई यह नक्काशियां हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित मानी जा रही हैं, यह आकृतियां इतनी सजीव और आकर्षक हैं कि लोग इन्हें देखकर विस्मृति हैं।
शोपियां जिले में स्थित हीर पोरा के घने जंगल इन दिनों इसी लिए चर्चा में है. कभी आतंकियों की पनाहगाह रहे इन जंगलों में मिली कृतियां अद्भुत खोज मानी जा रही है. हालांकि ये किन देवी-देवताओं की हैं, इसकी पहचान अभी तक नहीं हो पाई है.
स्थानीय ग्रामीणों और कुछ पर्यटकों को ये नक्काशियां उस वक्त दिखाई दीं, जब वे जंगल के रास्तों से गुजर रहे थे. मिली भवन पर देवी-देवताओं की आकृतियां के साथ ही कुछ धुंधली रेखाएं भी दिखाई दे रही हैं, जो प्राचीन लिपि की तरह लग रही हैं. हालांकि समय की मार के चलते ये कलाकृतियां काफी हद तक मिट चुकी हैं, लेकिन इन्हें अतीत से जोड़ने वाली एक असाधारण कड़ी के रूप में देखा जा रहा है. हो सकता है कि यह सदियों पुरानी संरचनाएं सनातन के गौरवशाली इतिहास के अध्याय के कुछ अनछुए पहलुओं को उजागर करे।
प्राप्त हो रही जानकारी के अनुसार चर्चा में आई है नक्काशियां मुगल रोड से 3 किलोमीटर दूर हीर पोरा, शोपियां में मिली हैं.
वहां उन्हें सामाजिक कार्यकर्ता जावेद बेग मिले, जो बताते हैं, ‘बेरुअह में कश्मीर के महा आचार्य अभिनव गुप्ता की ये गुफा सदियों से स्थापित हैं और बेहद पवित्र स्थान मानी जाती हैं. इस गुफा का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है. बताया जा रहा है कि नौवीं शताब्दी के कश्मीरी दार्शनिक महा आचार्य अभिनव गुप्ता अपने 1200 साथियों के साथ पूजा के उद्देश्य से बिरोह की इस पवित्र गुफा में गए थे और बाद में वापस नहीं लौटे.’
*जानिए कौन हैं महा आचार्य*
महा आचार्य अभिनव गुप्त एक महान कश्मीरी दार्शनिक, lविद्वान और कवि थे। उनका जन्म 950 ईस्वी में कश्मीर में हुआ था। वह कश्मीर शैव धर्म के एक प्रमुख विद्वान और दार्शनिक थे, और उन्हें कश्मीरी संस्कृति और दर्शन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
अभिनव गुप्त ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
1. तन्त्रालोक: यह उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसमें उन्होंने कश्मीर शैव धर्म के सिद्धांतों और दर्शन को विस्तार से बताया है।
2. तन्त्रसार: यह ग्रंथ तन्त्रालोक का एक संक्षिप्त संस्करण है।
3. देव्यायामलतन्त्र: यह ग्रंथ देवी की पूजा और उपासना के बारे में है।अभिनव गुप्त का दर्शन और विचार कश्मीरी संस्कृति और दर्शन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके विचारों ने कश्मीरी शैव धर्म के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
साधना के लिए हिमालय की घाटी और वन हमेशा पसंद रहे हैं.। ऐसे में सत्य की खोज के लिए साधना से अर्जित ज्ञान भी इन्हीं घाटियों वादियो और वनों में
फैला बिखरा हुआ है. कश्मीर क्षेत्र पहले सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था.बाद में मौर्य और कुषाणों के शासनकाल में यह बौद्ध धर्म का केंद्र बन गया.
सुल्तान महमूद के विजय अभियान के बाद कश्मीर में इस्लाम धर्म अपनाने की शुरुआत हुई.
1750 ईस्वी में अफ़ग़ान शासन के उत्पीड़न से कई लोग इस्लाम धर्म अपनाने को मजबूर हो गए थे.
राजा सहदेव के शासनकाल में (1301 से 1320 ईस्वी) सूफ़ी धर्म प्रचारकों के प्रभाव में और मजबूरी में कई लोग इस्लाम धर्म अपनाने लगे थे.
तुर्किस्तान से आए सूफ़ी धर्म प्रचारक बुलबुल शाह ने इस्लाम को कश्मीर में फैलाया था. इस्लाम के प्रभाव के कारण सनातन धर्म से संबंधित तमाम चिन्ह, पुस्तके और ज्ञान विज्ञान सामने नहीं आया। अंग्रेजों की शासन काल में भी इस पर कोई विशेष कार्य नहीं हुआ। सांप्रदायिकता की जो आग सुलगाई वह कश्मीर घाटी को लगातार दहका रही है. इस संरचना के मिलने के बाद पुरातत्व विभाग, इतिहास वेदाताओं और सनातन संस्कृति के रखवालो को यहां बिखरे हुए ऐसे तमाम चिंन्हो को एक सूत्र मैं इकट्ठा कर इसे विश्व विरासत में दर्जा दिलाया जा सके।