जौनपुर-नगर के बी.आर.पी इण्टर कॉलेज के मैदान में आयोजित सात दिवसीय रामकथा के छठवें दिन कथा में अन्तर्राष्ट्रीय कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि भक्त कभी किसी का अहित नहीं करता है। अगर कोई किसी भी प्रकार से किसी का अहित सोचता है तो वो भक्त नहीं हो ही सकता है। श्रीमहाराज ने व्यासपीठ से भरत चरित्र और शबरी प्रेम से जुड़े प्रसंगों का संगीत मय गायन करते हुए कहा कि मानव को अपने जीवन में यत्नपूर्वक भगवान का भक्त बनने का प्रयास करना चाहिए।
श्रीप्रभु से लव लगा लेने वाले व्यक्ति की चिंता स्वयं भगवान करते हैं। जीव भगवान की ओर एक कदम चलता है तो भगवान स्वयं चलकर उसके पास आ जाते हैं। वह उसी हर प्रकार से वैसा ही देखभाल करते हैं जैसे मां अपने बच्चों का करती है। भक्त की राह में अगर कोई रोड़ा बनता है तो उसे भी भगवान जरूर दंड देते हैं।श्री महाराज ने कहा कि मनुष्य को यह प्रयास करना चाहिए कि उससे कभी भी किसी साधू-संत का अपकार नहीं हो, अगर ऐसा होता है तो परिणाम झेलने के लिए तैयार रहना होगा। भगवान ने कभी भी कहीं भी जाति-पाति के भेदभाव को बढ़ावा देने की बात नहीं कही है। प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि धरती के किसी भी मनुष्य के लिए भगवान का गुणगान करने के लिए जाति और कुल का कोई महत्व नहीं होता है। हमारे सनातन ग्रंथों में यह बार बार बताया गया है कि जो कोई भी चाहे वह प्रभु को जप ले और अपना जीवन धन्य कर ले। श्रीमहाराज ने कहा कि हमारी संस्कृति धर्म पर आधारित है। जैसे तैसे नहीं चलती है और धर्म और परंपराओं का सब विधि से पालन होना चाहिए और तभी समाज का कल्याण संभव है। मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिए ही जीवन में गलत कार्य करता है और धन इकट्ठा करता है लेकिन उसे सोचना चाहिए कि इस गलत कार्य में कोई भागीदार नहीं होगा।श्री महाराज ने कहा कि भगवान ने ही धर्मार्थी ज्ञान प्रकाश सिंह को प्रेरित किया कि मेरा भी थोड़ा कार्य करे इसीलिए उन्होंने इस भव्य रामकथा का आयोजन किया। अच्छे कार्य कराने के लिए भगवान से ही प्रेरणा मिलते है। तभी मनुष्य अच्छे कर्म करके समाज में कीर्ति प्राप्त करता है। श्रीमहाराज ने कहा कि परिवार में सत्संग बढ़ रहा है। कहा कि भगवत भजन में मौका नहीं छोड़ना चाहिए जहां भी मौका मिले तो पहुंच जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाव और स्वभाव समझकर व्यवहार करना चाहिए। श्रीमहाराज ने लक्ष्मण जी के आवेश का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि क्रोध में बुद्धि पलायित हो जाती है। लक्ष्मण उग्र प्रवृत्ति के थे लेकिन भरत भैया हंस जैसे थे। भगवान राम ने कहा था कि भरत जैसा इस धरती पर कोई नहीं है।प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि जानबूझकर किया गया अपकर्म या पाप मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ता है और उसका फल हर हाल में भोगना पड़ता है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग रोज-रोज काम करते और गंगा जी में नहाकर पाप धो लेते हैं फिर तो धरती पर कोई पापी बचता ही नहीं। सनातन सद्ग्रंथों में हर बात की व्याख्या की गई है। हमें इन पर विश्वास रखते हुए जीवन जीना चाहिए। यह कथा सेवाभारती के बैनर तले चल रही है। महामंडलेश्वर किन्नर अखाड़ा कल्याजी नंद गिरी जी महाराज ने व्यासपीठ से आशीर्वाद लिया और प्रेमभूषण जी महाराज का सम्मान करते हुए उनको आशीर्वाद दिया।
( * *कथा में राजनीतिज्ञों का रहा जमावड़ा*
संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं गंगा समग्र के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामाशीष एवं पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने व्यासपीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।
इसके अतिरिक्त पूर्व कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी, मंत्री गिरीश चंद्र यादव, पूर्व सांसद धनंजय सिंह, नगर पालिका अध्यक्ष मनोरमा मौर्या, रामसूरत मौर्या, पूर्व विधायक सुरेंद्र प्रताप सिंह, सेवाभारती के जिलाध्यक्ष डॉ. तेज सिंह, आयोग के सदस्य डॉ. आर एन त्रिपाठी, शिक्षक नेता दीपक सिंह, शिवा सिंह समेत हजारों लोग मौजूद रहे।