जौनपुर: मंगलवार को पूरे जनपद में हलषष्ठी यानि ललई छठ का पर्व श्रद्धा, भक्ति एवं विश्वास के साथ मनाया गया। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से पहले हलषष्ठी, या ललही छठ का त्योहार मनाया जाता है। हलषष्ठी भादों कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इसी दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। जनपद और आसपास के इलाके में इस त्योहार को ललही छठ और हलछठ भी कहते हैं। मंगलवार की सुबह से ही महिलाएं जगह-जगह मंदिरों पर अथवा घर आंगन में एकत्र होने लगी उन्होंने जमीन में कुशा गाढ़ कर उस पर भैंस के दूध,दही, महुआ आदि से पूजन किया। पारंपरिक तौर पर कथा पढ़ी गई और देवी गीत गाए गए। व्रती महिलाओं के लिए इस दिन खेत मे पैदा होने वाले अन्न का प्रयोग वर्जित है। माताएं पुत्र की दीर्घायु के लिए ब्रत रखती है।
मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजन से संतान को लंबी आयु और सुख-समृद्धि प्राप्त होती हैइसके लिए माताएं उपवास करती हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से मिला पुण्य संतान को संकटों से मुक्ति दिलाता है। कहा जाता है कि
जब कंस को पता चला की वासुदेव और देवकी की संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी तो उसने उन्हे कारागार में डाल दिया और उसकी सभी 6 जन्मी संतानों वध कर डाला। देवकी को जब सांतवा पुत्र होना था तब उनकी रक्षा के लिए नारद मुनी ने उन्हे हलष्ठी माता की व्रत करने की सलाह दी। जिससे उनका पुत्र कंस के कोप से सुरक्षित हो जाए। देवकी ने हलषष्ठी ब्रत किया। जिसके प्रभाव से भगवान ने योगमाया से कह कर देवकी के गर्भ में पल रहे बच्चे को वासुदेव की बड़ी रानी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। जिससे कंस को भी धोखा हो गया और उसने समझा देवकी का संतवा पुत्र जिंदा नहीं हैं। उधर रोहिणी के गर्भ से भगवान बलराम का जन्म हुआ। इसके बाद देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रुप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। देवकी के व्रत करने से दोनों पुत्रों की रक्षा हुई।