जौनपुर। फ्रेंंडशिप डे के अवसर पर विभिन्न लोगों ने मित्रता पर लंबी चौड़ी वार्ता कर एक दूसरे के गले मिलकर खुशी का इजहार किया। मित्रता एक ऐसा शब्द है जो किसी किसी को ही अनुभव हो सकता है। नर हो या नारी दोनों के लिये मित्रता एक आवश्यक बिंदु है। रिश्ते तमाम प्रकार के होते हैं लेकिन यारी का रिश्ता सब रिश्तों पर भारी होता है। दुनियां के सबसे खूबसूरत शब्दों में से एक शब्द हो दोस्त इसलिये कि दोस्त वो है जो आपका समझता है, दोस्त आपके हर सही निर्णय में आपके साथ होता है वह मुसीबत से बचाता है। उसका नाम घर पर बहाना मारने के काम आता है और सबसे बड़ी बात यह है कि आप जो करें, जो कहें दोस्त कभी आपको जज नहीं करता, आपके प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं पालता है आखिर क्यों न हो ऐसा रिश्ता दुनियां के सबसे खूबसूरत रिश्तों में से एक। मित्रता यह कोई नया शब्द नहीं है। मित्रता की शुरूआत त्रेता युग और द्वापर युग से चला आ रहा है। त्रेता युग में भगवान रामचन्द्र जी सुग्रीव से दोस्ती करके वानरों की एक सेना तैयार कर लंका पर विजय प्राप्त किया था। मित्रता का ही प्रभाव था कि हनुमान और अंगद जैसे धुरंधर योद्धा लंका पहुंचकर जहां एक ने सोने की लंदा जलाकर राख कर दिया था वहीं पर अंगद ने रावण के सामने पैर जमाकर खड़े हो गये और पूरी सभा को ललकार दिया था। अन्तत: जब लंकेश स्वमं पैर उठाने के लिये आगे बढ़े तो उन्होंने धिक्कारते हुए कहाकि लंकापति मेरे पैर नहीं अपितु भगवान राम चन्द्र जी के पैर पकड़कर माफी मांग लो। यह तो त्रेता युग की कहानी है तो दूसरे युग जब हम द्वापर युग में चलते हैं तो भगवान कृष्ण और सुदामा की दोस्ती जग जाहिर है। सुदामा जी भगवान कृष्ण के बचपन के दोस्त थे और गरीबी से इतना तंग आ गये थे कि पत्नी के कहने पर एक दिन वह श्रीकृष्ण के पास पहुंच गये। पहरेदारों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो सुदामा जी ने कहा अरे द्वार पालों कन्हैया से कह दो कि मिलने सुदामा गरीब आ गया है। भगवान कृष्ण जब सुदामा जी से मिलते हैं तो सबसे पहले उनका पांव धोने के बाद पत्नी द्वारा दिये गये सांवा को दो मिट्ठी खाकर दो लोक का मालिक बना दिये तीसरे मुट्ठी जब लिये तो रूक्मिणी ने हाथ पकड़ लिया और कहाकि हम लोग कहा रहेंगे। भगवान कृष्ण मित्रता में इतने पागल हो गये थे कि दो लोक का मालिक अपने मित्र सुदामा को पल भर में बना दिया था। आदिकाल से चला आया मित्रता का यह उदाहरण आज भी देखने को मिलता है। राजनैतिक क्षेत्र हो या व्यवसायिक हर जगह मित्रों में अपने सखा के लिये तन, मन बल से सहयोग किया है। राजनैतिक क्षेत्र में अगर जौनपुर की बात करें तो तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष राजपति यादव ने अपने मित्र सतईराम के लिये हर समय सहयोग करने और आगे बढ़ाने के लिये प्रयासरत रहते थे यह तो एक बानगी है इस प्रकार के कई ऐसे उदाहरण है जहां पर दोस्तों ने दोस्त के लिये अपने जान को खतरे में डालकर सहयोग किया है।