सांसों में है जहर घुल रहा,
सांसें हो रही है ,अब कम ।
दुनिया के ग्लेशियर गल रहे
जलाभाव मानव का गम।
ऐसे यदि सब वृक्ष कटेंगे,
कैसे होगा सुखद बसंत।
धरती मां,बस बंजर होगी,
खतरे में सबका जीवन।।
सुबक रहा है ,कुकृत्यों पर, ताप वृद्धि की, सोच इंसान।
बृक्षों के घनत्व बढ़ाओ,
बची रहे सबकी पहचान।।
वैसा मौसम,वैसी ऋतुएं, वैसी वर्षा अब नहीं रही।
शीतल मन्द सुगन्ध वायु की वो मिठास अब कहां गई।
विद्वानों ने मान लिया है
धरती का है ताप बढ़ा।
ग्रीन हाउस के प्रभाव से,
जीवन का संताप बढ़ा।।
कलोरो फ्लोरो कार्बन विष, घुल रहा हमारी सांसों में,
हो रही नष्ट ओजोन परत, मानवता डूबी आंसू में।
है कराह रहा, जैव मंडल, ग्रीन हाउस का दुष्परिणाम।
मानव के होंठों पर,फिर से आया, हे तरु,तेरा नाम।।
पर्यावरण यदि स्वच्छ बनेगा
स्वस्थ्य रहेगा तन और मन।
रक्षित होगा जीवन सबका,
वृक्षों का हम करे जतन।।
स्मृति वन,वन उत्सव होवे,
गांव गांव, हर नगर नगर,
डगर डगर पर वृक्ष लगावें,
नही बचेगा ,वायु गरल।।
रचनाकार: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुंदरपुर वाराणसी